प्रखर प्रभात
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नींद में भी छुप के मुझसे,
जगत जो प्यार है ।
धड़कनें जो बढ़ रही ,
वो प्यार की रफ्तार है ।।
ख्वाब की लहरें बनू ,
और याद से क्यों भाग लूं ।
छूप के उसकी नींद में,
मैं सोचता कि जाग लूं ।।
हर ख्वाब की ही पंखुड़ी पर ,
वह प्रीत का एहसास है ।
देख कर मन बोलता कि,
तू बड़ी झक्कास है।।
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