मैं इश्क़ ढूंढ रही हूँ
उस दरवाजे की चौखट पर
जहां से उसके कदमों की आहट सुनाई देती थी
उस आईने में
जिसमें उसका अक्स दिखाई दिया था
उस छत के चौबारे में
जहां से उसकी नज़रें मेरी नज़रों से टकराई थी
उस पतंग की डोर में
जिसे हम दोनों ने थामा था एक साथ....
उस सुरमई शाम में...
जो हम दोनों ने एक दूसरे की बाहों में बिताई थी
उन चाँद तारों में....
जिनकी रोशनी में हमने रातें गुजारी थी
उस धुन्दले सवेरे में...
जब उसका चेहरा देखती थी तो दिन खिलता था
लेकिन........
अब वो मुझे नज़र नहीं आता
कहीं भी नज़र नहीं आता....
अब सिर्फ मैं हूँ
मेरी तन्हाई है
कुछ यादें हैं
कुछ वादें हैं
अब..........सिर्फ मैं हूँ
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