ख्वाबों के सफर से दूर निकल चुके हैं
खुद से किया वादा धीरे_धीरे भूल चुके हैं!!
ख्वाहिश नहीं रही Manzil को पाने की
अब बस zindgi से समझौता कर के चल रहे हैं!!
खुद में नाराज हूं ,आखिर ख्वाब क्यों तोड़े
जब manzil तक पहुँचना ही नहीं था
तो shuruwat कर के क्यों छोड़े!!
अभी भी आस बची है , कुछ करने केलिए
मगर दिल में आग नहीं रही कुछ कर दिखाने केलिए!!
शुक्रगुजार हूं Maulaa अभी तक आप ने थामे रखा हैं
इसलिए तो दर्द छिपा कर मुश्कुराना सीखा हैं!!
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