रफिक़ गुफ्तगू में,
जाने किस फिराक में!
पूछ डाला कि कभी,
हो सफर में तुम्हारा नाम उम्दा कभी।
याद आएंगे हम, मशहूर होने बाद।
हमारा पता तो मेहरूम, न हो जाएगा बाद ।
'बिना हिचक', जवाब में ये था मेरा।
मूहफिल्सि का दौर, तुम्हारे न रहने से है मेरा।
चाहे मैं कितनी भी, काबिलियत कमाऊ।
मैं कितनी भी सोहरत ,इज्ज़त ,तबीयत चाहूं ।
शर्त ये है, तुम्हारे करीब रह कर पाऊं!
--Anuradha sharma
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