भेदभाव की दीवारों को,
तुम क्यों गिराना चाहती हो,
स्त्री-पुरूष का भेद,आखिर
क्यों मिटाना चाहती हो!
परिवार,समाज से अधिकारों
की माँग क्यों करती हो,
एक स्त्री हो,स्त्री बनकर ,
क्यों नहीं जीना चाहती हो !!
वस्त्रों से आँकलन तुम्हारा
करता होगा,ये समाज सारा,
चरित्र की पवित्रता,तुम क्यों,
प्रमाणित करना चाहती हो!
तुम स्वतंत्र हो,खूबसूरत हो,
फिर क्यों तुम अबला हो,
एक स्त्री हो,स्त्री बनकर
क्यों नहीं जीना चाहती हो!!
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