हर रोज़ अपनी परिस्थितियाँ देखकर ,इतनी टूट गई हूँ मैं .
किसी और सेे अब क्या रूठूंगी ,खुदसे ही इतना रूठ गई हूँ मैं .
यूँ तो असानी से हार मानती नहीं हूँ ,पर हर दिन टुकड़ो मे टूट रही हूँ मैं .
हौसला और समझ साथ होते हुए भी कहीं पीछे छूट रही हूँ मैं .
अपनो को सब बतलाकर भी गलत ही कहला रही हूँ मैं.
कदम तो लेती हूँ आगे बढ़ने को फिर क्यों खुदको पीछे पा रही हूँ मैं ?
खुद्की गलतियां निकालकर सबसे माफ़ी तक मांग ली है ,फिर क्यों रिश्तों से छूट रही हूँ मैं ?
अपनी ज़िंदगी से रोज़ की लड़ाई लड़कर ,मुझे अकेले ही जीना है सीख रही हूँ मैं ...
यूँ तो घरवालों की जान हूँ ,पर वक्त की चोट से उन्हें भी नहीं समझ आती हूँ मैं ..
परेशान हूँ पर धैर्य और समझ है मुझमें ,अब किसी को नहीं समझा पाती हूँ मैं ...
एक बंद बिना राह के कमरे में भी ,अपना रास्ता ढूंढ रही हूँ मैं ..
वक़्त है बदल जायेगा बस खुदको यही समझाकर इन् कुछ पंक्तियों में सुकून ओढ़ रही हूँ मैं ...
Tanu
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