( गज़ल़ )
सुकून दिल का औ करार पाया ही नही
जो तू आया तो कुछ और नज़रआया ही नही,
मैं बहती रही किनारे पे दरिया बनकर,
मुझे आसमां ने कभी दिल से लगाया ही नही.
बहुत आस थी तुझे सीने से लगाने की मेरी,
कमबख्त रूह ने जिस्म को अपनाया ही नही.
तमाम गम़ थे इस राह ए जिंदगी में अगर,
ऐ रहगुज़र रुक के तूने मुझे ये बताया ही नही.
जख्म़ गहरा था नासूर बन गया अब तो,
देख कर अब तलक़ तू भी मुस्कुराया ही नही.
सुकून दिल का औ करार पाया ही नही,
जो तू आया तो कुछ...............alka
-