बसंत ने तमाशा बनाया
मुझ्रे पतझड़ ने अपनाया है
बारिश ने बहाये है मेरे कागज से ख्वाव
मुझे रेगिस्तान ने ही सजाया है
शीतल हवाओं ने जर्रा जर्रा जमाया
मुझ्रे तपिश ने ही जगाया है
भीड़ ने दी है बस कायरता
मुझे सुनसान राहो ने ही लड़ना सिखाया है
दोस्तों ने दी है हारने की वजह कई
मुझे दुश्मनो ने ही जीतना सिखाया है
प्रचुरता ने दी है बस नीरसता
मुझे कमियों ने ही मूल्य समझाया है
आराम ने दिया है बस आलस
मुझे संघर्षों ने ही तेज तर्रार बनाया है
सूख ने दी है बस आभासी अनुभूतियाँ
दुखो ने ही वस्तिवकता से मिलवाया है
जिंदगी की गोद में है बस अठखेलियां
मुझे मौत के डर ने ही जीना सिखाया है
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