अंधा बनकर दौड़ रहा जिस दौलत के लिए, कुचल रहा तू किसी और के सपने अपने योवन की गफलत में! काम न कुछ आना तेरे एक दिन छोड़ छाड़ के जाना है! ईश्वर ने इंसान बनाया इंसान बनकर जी बंदे! कर्म कर मानवता का यही रब की इच्छा है! फिर से मौका मिला है तुझको जीवन सफल बनाने का ! समर्पण भक्ति ही माध्यम है लख चोरियासी से मुक्ति का !
कभी बस एक चौथाई सी तो कभी आधी अधूरी सी खुद में खोयी खोयी सी कभी पूर्णतः की सीमा सी तो कभी सर्वांग संपूर्ण सी अस्तित्व में खिली हुयी सी कभी शब्दो की परिभाषा सी कभी व्यक्तित्व में विलीन सी खुद के हर पहलू से मैं वाकिफ़ सी चाँद की तरह मैं भी बढ़ती घटती सी।