शैतानी की जब हद हैं करता,
कोने में छुप जाता हैं,
एहसास करें जब गलती की तो,
चंचल आॅऺखें मटकाता हैं,
डर से मुझे वह साॅरी कहने,
अपनी आँखें हिलाता हैं,
खेल खेल में शाम बिताता,
चल चल कर थक जाता,
पसंद का खाना अगर न मिले तो,
मछलियों का खाना भी चट कर जाता,
नटखट का तो वो पुतला हैं वो,
अपने आसन पर चढ़ जाता हैं,
सोता हुआ तो हमें पता हैं,
चूॅऺ हरकत हो जग जाता हैं,
जिंदगी उसकी अपनी सी न लगती॥
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