दोस्त तो बहुत बनाएं हमने,
लेकिन कोई दिल के क़रीब न था,
दोस्तों के साथ रहते हुए भी हम,
ख़ुदको अकेला ही पाया था,
कोई समझा नहीं आज तक हमें,
ऐसा शायद कोई हमें मिला ही नहीं था,
लेकिन बहुत सालों बाद कोई अपना सा मिला,
जैसे कोई हम जैसा ही मिल गया,
ना ही कोई फ़रमाइश न कोई मतलब,
बस बातों से ही मेरी हर बात समझ जाए,
कोई मिला जो हमें समझने लगा है,
थोड़ा ही सही लेकिन फिर भी बहुत कुछ समझने लगा है,
अब और क्या बोलूँ उनकी तारीफ़ में,
कभी अपने जज़्बात को ना छुपाकर,
खुली क़िताब की तरह आपने आप को ज़ाहिर कर दिया है।
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