प्रकृति के वक्षस्थल पर ये कैसा विनाश है खो रहा अस्तित्व हर जीवन उदास है जिस मिट्टी के कण कण में खुशबू थी हवाओं की आज उन हवाओं में फैला जहरीला विकास है जब से हम जुड़े बाजारों से जमीन से बिछड़ते गए मानव प्रकृति के बीच का ये कैसा अवकाश है सूखते गए तालाब बड़े बांधों के आगोश में विज्ञान आज जीवन में सबसे बड़ा अविश्वास है