QUOTES ON #YQKAVITA

#yqkavita quotes

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15 MAY 2019 AT 10:34

एक अधूरी कविता
दफ़न है डायरी के बीच
सांस लेना भी दूभर है उसका
अलंकार रुदन कर रहे है
रस भावहीन है अधूरी कविता के

विरह से सुसज्जित है छंद उसके
मात्राएं अलग थलग पड़ी है

प्रेम का पूर्ण न होना
कितना अधूरा
और भावहीन बना देता है
किसी कविता को

पर जीवित रहतीं है
अधूरी कविताएं
किसी अपूर्ण प्रेम की भांति।

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3 NOV 2020 AT 14:28

दिन भर के कुछ चन्द पल ही जब बात वो मुझसे करता है
मैं तक़लीफ़ें भूल जाती हूँ जब इत्मिनान से वो मुझे सुनता है

(In caption)

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2 MAR 2019 AT 0:55

एक घर में कौन कौन रहता है?
परिवार,पालतू और चाकर
चूहे,छिपकली,कबूतर
अरे वो छत वाली गिलहरी भी
और तुम भी तो ज़ेहनी तौर पर
मेरे इर्द-गिर्द।

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13 APR 2021 AT 19:21

बारिशें🌧

ये बारिशें भी कुछ एहसास कराती हैं
हर बार आकर मेरी रूह को छू जाती हैं

(Read the caption )

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1 APR 2021 AT 17:53

वक़्त !

मेरे ख़ुद के ही वज़ूद का एहसास मुझे करा गया
वो मेरा वक़्त ही तो था जो मुझे मुझसे मिला गया

(Read caption)

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5 APR 2019 AT 18:35

जिस रोज़ मस्तक से बड़ा
कंधे का बस्ता हो गया,
और खेत जलते देखकर
सूरज भी छिपकर रो गया।
जब दीवार में उभरी दरारें
चौखटों तक आ गईं,
पगडंडियाँ जब धीरे-धीरे
पाँव सारे खा गईं।
जबसे कि दानव सत्य और
परियाँ 'किताबी' हो गईं,
झोपड़े की रोटियाँ
जबसे 'चुनावी' हो गईं।

बस उसी दिन से-
मेरी दाईं तर्जनी की सीध वाले
अवलियों में चिर-प्रकाशित-
नभ-भुवन के चपल नर्तक
शुभ्र-मुख इन तारकों ने,
घुँघरुओं को तोड़ दिया है,
स्वप्न देखना छोड़ दिया है।

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16 JAN 2022 AT 13:00

हर बार मुझी पे मरता है वो इश्क़ मुझी से करता है
एक रोज़ उसे मैं लिखती हूँ एक रोज़ मुझे वो पढ़ता है

(Full piece in caption)

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5 FEB 2019 AT 15:59

वो जिसे कहते कहते एक अरसा बीत गया पर वो बात पूरी न हो सकी ...

दरअसल उस बात में तुम थी ।




.... शिवम दुबे

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17 NOV 2018 AT 7:37

दबे पांव दाख़िल होने लगती है
मन की सतह पर कविता...
मैं बुनती हूं
एकांत की परिसीमा से
सटकर खड़ी भीतरी दीवारों की
मौन अभिव्यक्ति के
सन्निहित संदर्भ अर्थ में
दृष्टांत की भूमिका के साक्षी
सांध्यगीत के भावाभिभूत
शब्द संघर्ष में ।
लहरों से घिरी दिशाहीन नौका की
अंतर्व्यथा उत्कर्ष में
किनारे छूने की प्रतिस्पर्धा से
निरंतर टूटती बनती तरंगों के
लोमहर्ष में
मैं ढूंढती हूं कविता...
उनींदी आंखों की उबासियों में
नींद से उलझती खामोशियों में
भोर की निशब्दता में
प्रतिध्वनित मंदिर की
घंटियों के नाद में
हरसिंगार के झड़ते प्रेमालाप में.. ‌
मैं चुनती हूं कविताएं . !!!

प्रीति








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20 MAY 2021 AT 12:32

काश.....!

(अनुशीर्षक में पढ़ें)

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