जिस रोज़ मस्तक से बड़ा
कंधे का बस्ता हो गया,
और खेत जलते देखकर
सूरज भी छिपकर रो गया।
जब दीवार में उभरी दरारें
चौखटों तक आ गईं,
पगडंडियाँ जब धीरे-धीरे
पाँव सारे खा गईं।
जबसे कि दानव सत्य और
परियाँ 'किताबी' हो गईं,
झोपड़े की रोटियाँ
जबसे 'चुनावी' हो गईं।
बस उसी दिन से-
मेरी दाईं तर्जनी की सीध वाले
अवलियों में चिर-प्रकाशित-
नभ-भुवन के चपल नर्तक
शुभ्र-मुख इन तारकों ने,
घुँघरुओं को तोड़ दिया है,
स्वप्न देखना छोड़ दिया है।
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