QUOTES ON #YQHINDIQUOTES

#yqhindiquotes quotes

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2 SEP 2020 AT 21:44

ज़िंदगी जीना है तो हर हाल में जीना सिखलो,
ख़ुशी हो या गम हर माहौल में जीना सिखलो,
एक ही बार मिलती है ये ज़िन्दगी,
इसे संभाल कर रखना सीखलो।।

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21 MAR 2020 AT 22:00

अपनों व अपने देश के लिए,
चलती फिरती मौत ना बने,
जब तक अच्छा माहौल ना बने,
तब तक घर पर ही रहे।
#जनता_कर्फ्यू

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13 AUG 2020 AT 11:42

मेरी कहानी ( दहेज एक कुप्रथा )
अनुशीर्षक पढ़े 🙏

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14 MAY 2019 AT 11:35

ये दिल तुम्हारे प्यार में एक जिद्दी परिंदा है
तुम्ही से घायल है और तुम्ही से जिंदा है

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हिंदी जन-जन की भाषा है 🙏🙏

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9 AUG 2019 AT 23:45

और वह सूखा वृक्ष
आज भी प्रतीक्षित है
काले मेघ का ;

मृदु पत्रों से वृंत का
पुनः रक्षावरण देखने ,,
अधीर है ;

फलों का उन्माद
पुनः चहुंओर बिखेरने की कांक्षा है

क्यूंकि... चाह है ,,
फिर इक नीड़ की

सूखे वृक्ष को
पुनः कलरव की अभिलाषा है
क्यूंकि ..
.
.
घृणा है उसे - " एकांत से " ।।

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5 JUN 2019 AT 1:57

उसने पूछा, "ईद मनाते हो ? "
हमने कहा, "तुम्हें देखकर "

~दीपा गेरा





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15 MAY 2019 AT 10:34

एक अधूरी कविता
दफ़न है डायरी के बीच
सांस लेना भी दूभर है उसका
अलंकार रुदन कर रहे है
रस भावहीन है अधूरी कविता के

विरह से सुसज्जित है छंद उसके
मात्राएं अलग थलग पड़ी है

प्रेम का पूर्ण न होना
कितना अधूरा
और भावहीन बना देता है
किसी कविता को

पर जीवित रहतीं है
अधूरी कविताएं
किसी अपूर्ण प्रेम की भांति।

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23 MAR 2019 AT 9:10

पहचान उसके जैसी होती जा रही
या वो भी मानवीय संवेदनाओं को जीने लगा है!
सामने खड़ा दरख्त
सारी विषमताओं को त्याग
फिर से हरा होने लगा है.....!!

प्रीति
३६५ :84


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16 JUL 2021 AT 23:16

दिन-रात दिखाई देने वाले, चेहरे पहचाने से
नहीं समझ पाती क्यूँ मैं , कुछ अपने अनजाने से ।

पैदा हुए ,बड़े हुए संग संग ,फिर भी समझ ना आए,
साथ पढ़े और खेले कूदे, फिर भी मन ना भाए,
बाहर से कुछ, भीतर से कुछ, दोहरी जिनकी नीति ,
शायद दिल को समझ ना आए, दल बदली सी प्रीति।

जिन्हें प्रेम से गले लगा , रहते हम मनमाने से
समझ नहीं पाती क्यूँ मैं ,कुछ अपने अनजाने से।

दुनिया इतनी सही नहीं है ,मुझे सिखाते रहते ,
खुद के स्वार्थ के चक्कर में,मुझे पढ़ाते रहते,
सीधी मैं भी कभी नहीं थी,खुद मैंने माना था
लेकिन मन की बुरी नहीं हूं, ये भी पहचाना था।

अच्छाई को मेरी ,मुझसे ज्यादा सब जाने थे,
समझ नहीं पाती क्यों में कुछ अपने अनजाने से।


मैंने अपनी सोच समझ,सब कुछ उन पर छोड़ा था ,
शायद मेरा अपना जीवन, अर्पण कर छोड़ा था
रीति समझ दुनिया की पाऊं, इतनी तेज नहीं थी,
नीति समझ नियति की पाऊं, इतनी तेज नहीं थी,

लगी पढ़ाने दुनिया मुझको, जो उसके मन में था,
लगी बताने बात वो सारी,जो उसके मन में था,
दिल की मेरे फिकर जो करता, ऐसा कोई नहीं था,
दुख की मेरे जिकर जो करता, ऐसा कोई नहीं था,
चीख ,मौन में गई बदल सी,लगे वो अपनाने से,
नहीं समझ पाती क्यों मैं ,कुछ अपने अनजाने से।

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