था वो मेरी रूह का कातिल,
जिनसे हम मिल न सके।
चले थे जिनके ग़मो को मिटाने,
उन्ही को हमारी खुशियां उजाड़ने से रोक न सके।
मिलना ही था धोखा अंत में,
फिर भी हम उनके लिए अपनी वफ़ाएं रोक न सके।
मालूम था अंजाम इस आशिक़ी का
फिर भी हम उन्हें खुद से दूर रख न सके।
ईश्क़ में दिल किसी की सुनता नहीं
शायद तब ही हम भी दिमाग के बताये रास्ते चल न सके।
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