QUOTES ON #YQGAZAL

#yqgazal quotes

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12 SEP 2020 AT 23:46

एक बार देखो तो सही ज़रा ये कल कहाँ है
सफ़र की शुरुआत में है या मंज़िल जहाँ है

ठोकरों से राह की गिर जाता था हर बार ही
अब ज़िन्दगी की गुस्ताख़ियाँ समझ रहा है

सजाता रहा महफ़िलें औरों की ख़ुशियों की
मगर ग़म बाँटने को आज वो शख़्स तन्हा है

गुफ़्तगू करने से पहले वो इंसान परख लेना
क्योंकि वो सुन कर यहाँ की बताता वहाँ है

एक ग़लती की सज़ा देने को तैयार हैं सभी
गलतियाँ सुधार कर कोई समझाता कहाँ है

मैं हूँ इस ज़माने से शायद अभी कोसों दूर
कुछ पहलुओं को बताती मेरी गज़ल यहाँ है

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25 JAN 2021 AT 12:59

ज़मीं के मुकद्दर में आसमान कहाँ
आख़िर होती पूरी हर दास्तान कहाँ

घर बनते हैं महज़ ईंट से आजकल
अपनेपन की मिट्टी का मकान कहाँ

अधूरी ख़्वाहिशें लिए उम्र ढल गई
कोई जो हो पूरा ऐसा अरमान कहाँ

जहाँ होती नहीं पाबन्दी की बेड़ियां
इस आसमां के परे वो जहान कहाँ

सियासत की ख़ुमारी छाई है सब पर
मिले जो मज़हब का वो ईमान कहाँ

गुरूर की चादर में लिपटा है ज़माना
इस भीड़ में मिलता रहमान कहाँ

एक चेहरे पे मुखौटे हज़ार हैं यार
समझ पाना किसी को आसान कहाँ

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6 SEP 2020 AT 18:41

ऐ शाम ! तू ज़रा आहिस्ता - आहिस्ता गुज़र
क्योंकि मुझे अच्छा लगता है तेरा ये सफ़र

न आफ़ताब चाहती हूँ न ही महताब का नूर
मैं चलती हूँ तेरे ही साथ तू जाती है जिधर

तेरी वो चंचल सी हवाएँ मुझे देती हैं सुकून
जब भी कभी मायूसी से मैं जाती हूँ बिखर

एजाज़ सा है तेरी फ़िज़ाओं में शायद कोई
तेरी मुन्तज़िर बनकर मैं हो जाती हूँ बेसबर

तेरी ख़ुमारी है ऐसी कि तेरी ग़ैर मौजूदगी में
भटकने से लगते हैं मेरे ख़्याल यूँ दर-ब-दर

मशगूल हो जाती हूँ मैं तुझमें कुछ इस तरह
कि तेरे आगे हर एक पहर हो जाता है सिफ़र

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26 AUG 2020 AT 23:16

छोड़ा भी नहीं जाता और साथ रहा भी नहीं जाता
अपने एहसासों को हमसे उन्हें कहा भी नहीं जाता

नाराज़गी तो बेशक़ है मगर उसे हम बयाँ कैसे करे
बरगश्ता कर नहीं सकते और लड़ा भी नहीं जाता

हर एक हर्फ़ होता है हमारा फ़क़त उनके ही लिए
मगर उनसे तो कभी फ़ुर्सत में पढ़ा भी नहीं जाता

आज लम्हा-ए-वस्ल का जब ख़्याल आ गया तो
अब इन दूरियों का सिलसिला सहा भी नहीं जाता

ना जाने क्यूँ बढ़ सी गयी हैं उनकी तब्दीलियाँ भी
उनके इस मंसूबे को हमसे यूँ बदला भी नहीं जाता

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12 SEP 2020 AT 0:26

ज़माने से मिले ताने जब बेहिसाब हो गए
हुए मशरूफ़ जो ख़ुद में तो क़िताब हो गए

हक़ीक़त में जीना मुश्किल से आया मगर
नींदों से वास्ता टूटा तो फ़िर ख़्वाब हो गए

मोती तो निकले थे मुस्कुराहटों से ही मगर
मिलना हुआ जो तन्हाई से तो आब हो गए

बिखेर रहे थे जो अब तक महताब का नूर
टूटा यक़ीन एक बार तो आफ़ताब हो गए

उस ज़िन्दगी से थे ज़हन में हज़ारों सवाल
मगर मिल गए जो तज़ुर्बे तो जवाब हो गए

एक राज़ है इन हर्फ़ की ख़ुशबुओं का भी
काँटों से हुई जो दोस्ती तो गुलाब हो गए

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22 DEC 2020 AT 20:47

जाते जाते एक बार रुको तो सही
कुछ कहना है तुमसे सुनो तो सही

पीछे रह गया जो देखा नहीं तुमने
दीदार को एक बार मुड़ो तो सही

सुना है झुकने से मिटते हैं फ़ासले
सच कर दो इसे तुम झुको तो सही

सफ़र ख़ुद-ब-ख़ुद खूबसूरत होगा
मेरा हाथ पकड़ तुम उठो तो सही

ये निगाहें देखा करती हैं रस्ता तेरा
मिटाने को तिश्नगी मिलो तो सही

माना कि कल आज सा न होगा
क्यूँ डरते हो आगे बढ़ो तो सही

कहा है मैने फ़क़त सुना है तुमने
तुम भी कुछ मुझसे कहो तो सही

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21 JUL 2020 AT 11:15

लिखने के ही शौक़ीन हैं हम कुछ और इबादत नहीं है
पढ़ते हैं हर किसी को सिर्फ़ परखने की आदत नहीं है

अब अक्सर मिलता है सुकून एक ख़ामोशी में रह कर
किसी को परेशान कर रूठने मनाने की आदत नहीं है

मिलेंगे हमेशा चेहरे पर एक हसीन मुस्कुराहट के साथ
यूँ ही अपना हाल-ए-ज़िन्दगी सुनाने की आदत नहीं है

कोई समझ सके तो ठीक हमें वरना यूँ हर किसी को
अपने जज़्बातों का एहसास कराने की आदत नहीं है

मशरूफ़ हैं हम अब अपनी ज़िन्दगी की तन्हाइयों में
यूँ ज़माने की भीड़ से क़ुर्बतें बनाने की आदत नहीं है

एक रज़ा है हमारी अब सिर्फ़ ख़ुद से ही जीतने की
यूँ किसी से आगे निकल कर हराने की आदत नहीं है

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24 JUL 2020 AT 15:28

मुझे हर दर्द का हिसाब दे दो ना,
खुद को बेवाफाई का खिताब दे दो ना!!

यूँ ही दूरियाँ कब तक रहेगी,
मेरे हर एक सवाल का जवाब दे दो ना!!

मेरी गलतियों को नज़रअंदाज़ कर,
मेरी आंखो की नमी का हिसाब दे दो ना!!

हजारों की इस भीड़ से निकलकर,
मेरी ज़िन्दगी को फिर से बहार दे दो ना!!

कदम लड़खड़ा रहे हैं अकेले राहों पर,
महज़ दो पल ज़िन्दगी का साथ दे दो ना!!

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22 AUG 2020 AT 17:53

ज़िन्दगी में कुछ पन्ने ऐसे भी होते हैं ख़्वाहिशों के
जो पिघल जाते हैं संग महज़ दो बूँद बारिशों के

आज मनाने वाले तो फ़क़त शरीक-ए-हयात हैं
ज़माने की भीड़ में मेले हैं सिर्फ़ आज़माइशों के

झूठे जज़्बातों पर टिकी इस फ़रेबी क़ायनात में
सच्चाई पर चलने वाले ही मुरीद हैं गुज़ारिशों के

देखो बगावत का मंज़र ही आज आसमां छू रहा
क्योंकि मयस्सर नहीं है अब लोग नवाज़िशों के

यक़ीन की डगमगाती कश्ती तैयार है डूबने को
क्योंकि यहाँ चर्चे हैं सिर्फ़ लोगों की नुमाइशों के

यूँ तो दोस्ती है गहरी कलम और पन्नों से, मगर
बढ़ा देते हैं शौक कुछ गज़ल की फ़रमाइशों के

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10 SEP 2020 AT 23:22

कहानी तो हमारी फ़क़त मुख़्तसर थी
मगर न जाने क्यूँ ये दुनिया बेख़बर थी

मेरे सफ़र को बना कर रंगों सा हसीन
वो कह न सकी कि वही हमसफ़र थी

गलतियों पर मेरी लाखों इल्ज़ाम लगे
मेरी वो हर गलती ही मेरी रहबर थी

उजालों में भी रौशनी दिख न सकी
जब अंधेरे में हर किसी की नज़र थी

लगाया ज़ख़्म पर जिसे मरहम समझ
पता चला अब वो दवा ही ज़हर थी

मिट गई ज़िन्दगी जिसको सींचते हुए
मगर अफ़सोस वो ज़मीं ही बंजर थी

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