जब हम अपनी मोज मस्ती
की दुनिया मे गुम होते हैं,
तब सिर्फ वो कुछ आँखें
रातो को जाग कर हमारे
लिये सोचा करती हैं,
एक सुनहरे भविष्य को देखा करती हैं,
अपनी फ़िक्र न कर
हमारे लिये चिन्तित हुआ करती हैं,
वो आँखें तो दिन -रात
बस यही खाव देखा करती हैं,
हमेशा खोए रहा करती हैं ,
अपनॆ लिये नहीं सिर्फ हमारे
लिए दुआऎ मांगा करती हैं,
और हमसे ही अपने दुखॊ को
हसकर छुपाया करती है,
ए- खुदा तू उन आँखो
मॆ ही बसता है मेरे ,
मन्दिर -मस्जिद मॆ कहा मिला करते है,
ये फ़रिस्ते तो
मेरे माँ -पापा के रुप मॆ मेरे साथ रहा करते है!!
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