मसरूफ़ियत का बहाना देकर,
यूँ फासला ना बढ़ा
क्या काफी नहीं ये तन्हाइयां,
अब ये दूरी ना बढ़ा
है बरसती बरसात बाहर
मेरे अंदर की जलन और ना बढ़ा
सुकून है उसकी मौजूदगी से,
उसे पाने की तलब और ना बढ़ा
आरज़ू यूँ ही सिमट के ना रह जाए,
मेरी ख़ामोशियों को तू और ना बढ़ा
था बस साथ यही तक,
तो ए खुदा ये ज़िन्दगी तू और ना बढ़ा
© - तरपल
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