मैं फ़ूल तू मुझमें ख़ुश्बू सी
हम तुझसे छूट कर भी क्या करेंगे,
जाना कहाँ है सिवा औऱ तेरे
हम तुझसे रूठ कर भी क्या करेंगे,
लगा लो ना हमें अपने गेसुओं में
हम यूँ टूट कर भी क्या करेंगे,
अच्छे लगते हैं हम खिले-खिले से
हम यूँ सूख कर भी क्या करेंगे,
जी करता है बन जाऊँ भंवरा
पऱ ख़ुद को लूट कर भी क्या करेंगे..!
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