क्यों ना तुम बारिश बन जाओ, मैं छतरी !
तुम अँधेरा बन जाओ, मैं परछाई !
या तुम कागज़ हो जाओ, मैं स्याही !
तुम बनो रास्ता, मैं मदमस्त राही !
तुम ना धूप बन जाओ, मैं झरोखा !
क्यों ना तुम पानी बन जाओ, मैं प्यासा !
तुम होना मरहम, मैं पका सा घाव!
या तुम हो जाओ मलंग तितली, मैं हरी घास !
तुम हो जाओ बबूल, मैं उसका काँटा !
और ना तुम पानी बनना, मैं लोटा !
फिर हम साथ गिरेंगे, उस फर्श से दूर !
मिट्टी में मिलने के लिए..
हम साथ पढ़े जायेंगे.. क्योंकि तुम किताब हो जाना,मैं कहानी !
फिर तुम फुर्सत बन जाना, मैं "कभी और" !
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