ऊपर नील गगन है, नीचे बिछी हरी मख़मल है
लहरें नाच रही झीलों में, सरिता में कलकल है
तरुओं के झुरमुट दिखते हैं जिधर दृष्टि जाती है
'मेरे मिट्टी के घर' तेरी याद बहुत आती है
यूँ तो सूरज चाँद वही नीला आकाश वही है
आँख मिचौनी का बिजली बादल का खेल वही है
पर अपनी मिट्टी की सोंधी महक नहीं आती है
'मेरे मिट्टी के घर' तेरी याद बहुत आती है
-- © 'तलब' ... 🤔
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