ज़िन्दगी
चल कहीं दूर चलते हैं,
दोस्ती न सही दुश्मनी ही करते हैं।
बहुत शोर है यहाँ ख़्वाहिशो का,
ऊपर से जोर हैं अपनों का।
किस- किस की उम्मीदों को पूरा करते हैं,
अब तू ही बता किस ओर चलते हैं।
शहर तो पहले ही न गवारा था हमें,
सुना है अब, गाँव भी शहर की ओर चले है।
अब तू ही बता किस ओर रूख को मोड़ते हैं हम
चल कहीं दूर चलते हैं,
दोस्ती न सही दुश्मनी ही करते हैं।
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