मैं पतंग मेरी डोर, मूझे और कोई उड़ा रहा ।
मैं उड़ी ,मेरा लुफ्त हर कोई उठा रहा।
ली घसीट पटका जमी पर ,अब लातो तले दबा रहा।
गर मै कटी,गिरी यहाँ बहाँ,बदनाम मुझे ही बता रहा
ऐ - इंसानअपनीऔकात ,क्यूं मुझे तू दिखा रहा।
पाया किसी ने ,उड़ाया किसी ने ,
फिर उड़ चली जाने कहां मैं।
लू से लड़ी, लपटो मे लड़ी,
जाने कितने अपनो से लड़ी ।
बदनाम सी जाने मैं कहाँ,
फिर बेनाम हवाओ संग उड़ चली ।
आँसमा को ना छुआ ,ना इस जमी को दिल दिया ।
विखरे से दिल को विखेर कर,
बस आंसुओं से सिल दिया ।
" मै पंतग मेरी कथा मै सभी को बता रही ।
आप बीती नही मै तो जग बीती सुना रही।"
😊😊😊
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