बड़े अजीब से ख़्याल चलते रहते हैं हमेशा
ज़हन का मंज़र बदल जाता है- अचानक
बहस करता हूँ लोगों से
बहस से उठ जाता हूँ -अचानक
माज़ी को बुलाता हूँ
बात करता हूँ
ऊब जाता हूँ
छोड़ आता हूँ माज़ी को कहीं लावारिस- अचानक
कई नामों में ढूंढता हूँ इक नाम
सिगरेट के कश खींचता हूँ
मुस्कुराता हूँ, धुआँ उड़ाता हूँ
बुझा देता हूँ सिगरेट- अचानक
शाम की तरफ़ देखता हूँ, सोचता हूँ
थाम कर हाथ सूरज का
उतर जाऊंगा दरिया में
किसी रोज़- अचानक
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