मैं हूँ किसी साइकिल पे सवार जिसकी अक्सर चेन उतर जाती है
तुम हो किसी कार पे सवार जो हवाओं से बाते करती है
मैं हूँ किसी अंधेरे कमरे में बैठा जहा रोशनी भी आने से डरती है
तुम हो खुले आसमान के नीचे बैठे जहा दिन भर उजाला रहता है
मैं हूँ किसी समसान सा जहा लोग आने से भी डरते है
तुम हो किसी मंदिर से जहा हमेशा लोगों की भीड़ लगे रहती है
मैं हूँ किसी पहाड़ की चोटी पर खड़ा जहा से नीचे देखने पर भी डर लगता है
तुम हो किसी मैदान के पास जहा से उप्पर देखने पर सिर्फ आसमान दिखता है
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