उधेड़ना होता है खुद को
एक सिरे से दूसरे छोर तक
टटोलती हूं ताक पर
आंखों से ओझल हुई
स्मृतियाँ
जिन्हें बड़े जतन से
तनिक पीछे ढ़केल कर रखते हैं
किसी दिन खो जाते हैं।
अपनी ही पहुंच से
बाहर....!
दराज के ड्रावर से
कपड़े की तहें
खंगालते हाथ अनायास ही
मन की राह बदल लेते हैं
उन सूखे फूलों की पंखुड़ियां
जिन्हें अरसे की उम्र
लगी है
बंद रहकर सारी नमी खो चुके
फूल 🌸
बिखर गए हैं
अनगिनत
अहसास की खुशबूओं से
तर ब तर!
प्रीति
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