QUOTES ON #WRITINGDESIRE

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14 MAY 2018 AT 1:25

Letter To My Daughter






(Read in Caption)



Going to be a little long

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18 MAY 2019 AT 21:16

तेरे छोड़ जाने का ,अब मुझे कोई गम नहीं,
ये कागज़ कलम भी, किसी हमसफ़र से कम नहीं,

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8 MAR 2018 AT 11:09

क्योंकि एक औरत हो तुम,
रोकेंगे तुमको, टोकेंगे तुमको
हँसना कब, रोना कब, ये भी हम बतलाएँगे
हया, लाज, सौंदर्य, इज़्ज़त का पाठ पढ़ाएंगे,

क्योंकि एक औरत हो तुम
सारी कुर्बानी तुमसे ही दिलवाएंगे
कभी तुम्हारी आज़ादी, कभी पहचान छीन ले जाएंगे
तुमने गर है प्रेम किया तो दूर उसको करवाएंगे।
कभी मारेंगे कोख़ में तुमको, कभी पैसों के लिए जलाएंगे।

क्योंकि एक औरत हो तुम,
कभी नोचेंगे जिस्म तुम्हारा, कभी हाथ फेर निकल जाएंगे,
कभी आंखों से करेंगे नंगा, कभी भरी महफ़िल नचवाएँगे,
ये है देखो हक़ हमारा, ये भी तुमको बतलायेंगे।

क्योंकि एक औरत हो तुम
गर तुमने आवाज़ उठाई, दोष तुम्ही पर डालेंगे,
करेंगे शुरुआत घर से ही, तुमको अबला बना डालेंगे
कभी फ़र्ज़ तो कभी धर्म, झुक जाना सिखलायेंगे,
जो फिर भी तुम न मानी, कुलटा चरित्रहीन बतलाएँगे।

पर घबराओ मत

क्योंकि एक औरत हो तुम
पूजेंगे तुमको मंदिर में, देवी हो बतलाएँगे,
कभी दुर्गा, कभी शक्ति, काली रूप बताएंगे
फिर भी तुमको कम हो पड़ता तो
वुमेन्स डे भी मनाएंगे।
करेंगे कुछ विचार विमर्श, नारे भी लगाएंगे,
तुम हो कितनी पूजनीय ये भी हम बतलाएँगे।

क्योंकि एक औरत हो तुम।

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18 MAR 2018 AT 22:57

दर्द मेरा मकतब है,
है मोअल्लिम वक़्त मेरा,
ख़ुदा ने कुछ यूँ दी पुख़्तगी,
कर दिया तलाश-ए-इल्म सख़्त मेरा।

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6 MAR 2018 AT 11:34

सूखे दरख़्तों में ज़िंदगी की राह देखी है मैंने,
मरने वालों में जीने की चाह देखी है मैंने,
अपनों से बिछड़ने पर तो रोते हैं सभी,
दूसरों को खोने पर निकलती आह देखी है मैंने।

ख्यालों के आईने में हक़ीक़त की परछाई है,
अपनों को आज अपनों से ही रुसवाई है,
खुद की तकल्लुफ छोड़ बाहर देख तू 'आरिश',
रेगिस्तान में बहती नदी की धार देखी है मैंने।

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8 APR 2018 AT 19:29

सागर सी गहराई लिए, साग़र सी मदहोशी,
डूबे फिर इन आंखों में, तो कौन है इसका दोषी

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29 MAR 2018 AT 12:20

प्रेम देखना हो तो देखें सारस में,
और
सुबह देखनी हो तो देखें बनारस में।

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23 MAR 2018 AT 0:42

व्यर्थ न करो..
तुम्हारा कल हूँ मैं...
हाँ, जल हूँ मैं!

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28 FEB 2018 AT 11:03


आप को देख कर, देखता रह गया
क्या कहें आप से, सोचता रह गया।

बाजुओं में भरा, देखो उनका बदन
छूने से जिनके मैं, काँपता रह गया।

होश आया मगर, अब तो देर हुई,
चल दिये वो उधर, मैं खड़ा रह गया।

जब जुदाई की रुत, सामने आ गयी,
जा रहा था सनम, रोकता रह गया।

मिन्नतें थी की, मैंने कितनी दफा,
दर पे उनके खड़ा, ताकता रह गया।

होंठ खोले जो उसने, मेरे सामने,
काँपते होंठों पर, नाम सा रह गया।

जिंदगी का सफर, है किया इस तरह,
मंजिलें न मिलीं , रास्ता रह गया।

हसरतों के लिए, हमने खाये सितम,
छोड़कर हसरतें, बा-ख़ुदा रह गया।



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10 MAR 2018 AT 19:43

ज्यादा लब्बोलुआब हमें आता नही,
बात एकदम साफ है,
प्यार चाहे थोड़ा कम देना,
साथ मुझे पूरा चाहिए

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