कभी कभी मेरे शब्दों का मेल नहीं होता,
और ये दर्द मुझसे झेल नहीं होता,
लगता है कि खुद से नाराज़गी करलूं,
पर वो भी मुझको कबूल नहीं होता,
फिर बैठा रहता हूं इनकी सुलह के इंतज़ार में,
कई बार तो सुबह के इंतज़ार में,
फिर आते हैं जब तो आते हैं ऐसे,
जैसे पड़े हुए हैं एक दूसरे के प्यार में..
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