उस मेज़ की दराज़ में ,
दर्ज़ हैं हमारे शौक–ए–राज़ ।
पसंदीदा इत्र की खुशबू रखी हैं जो ,
हमारा अंदाज़ सबसे जुदा करती ।
इक अलग सोच की दुनियां बस्ती ,
जो उपन्यासों के पन्नों से झलकती ।
पुरानी तस्वीरों की बारात बसती हैं ,
खरा सोना हैं वो यादें ।
पुरानी–सी फाइल पड़ी होगी ,
काबिलियत की निशानी ।
कभी मिजाज़ कभी कागज़ों के थपेड़ें झेलें ,
तब जाके नायब अल्फाज़ हम ला पाएं ।
जाने कितने स्याहि सोखे होंगे उस दराज़ ,
तब जाके ये रुबाब हासिल हमें ।
उस मेज़ की दराज़ में ,
दर्ज़ हैं हमारे शौक–ए–राज़ ।
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