//जीवन व्यर्थ गँवाया//
माया के चक्कर में पड़कर हरि नाम बिना जीवन व्यर्थ गँवाया
मिला इन्हीं कर्मों का फल तो लख चौरासी में चक्कर खाया...
धन दौलत और ये माया कुछ भी तो साथ नहीं जाएगा
हाथ पसारे जाते हैं सब जो मुट्ठी बाँध कर था आया...
चला जहाँ से जब वो अकेला कोई नहीं साथ निभाया,
पड़ने लगे जब यम के डंडे तब हैत्राहि-त्राहिचिल्लाया...
जियो सुकून से दुनिया में पर ना भूलो कभी ईश्वर को ,
जिसने दुर्लभ मानव तन को तुम्हें सहज में प्राप्त कराया...
जो भी क़दम रखो बढ़ें वो पुरुषार्थ को ओर हमेशा
कृष्णा"इस निर्मल मन को क्यों मोह माया में भरमाया..
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