"तुम्हारी बातें"
एक वक्त आएगा जब.…
हमारी बातें खत्म हो जाएँगी...
तब तुम सारी बातें
नए शिरे से दोहरा देना....
आशमाँ क्यूँ हमारी बातों की
तरंगों से खिल उठता था,
हवाओं में क्यूँ हमारी बातों
से कम्पन्न पैदा हो जाता था,
बारिशों में बिजली की चमक
के साथ क्यूँ गर्जन बढ़ जाता था,
बसंत में कोपलों की कोमलता में
क्यूँ मृदुता आ जाती थी....
इन सब बातों से भी पर्दा उठा देना....
अंत मे एक बोसा करना
मेरे माथे पर .......
और सदैव के लिए गहरी नींद में सुला देना...
"क्योंकि तुम्हारी बातों वगैर मैं कहाँ....!!"
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