यहाँ पर दर्द भरी रचनाओ को पढ़ पढ़ कर मैंने
सोचा कुछ मैं भी दर्द बायां करदु,पर किसका??
तन पे ना हो कपडे उनके ,खाने को ना हो दाने
उन अभागो से पूछो, वो फिर भी न दे बहाने
इनके कपड़ो के ढेर , और दिन भर मुह चलाने
इन खुशनसिबो से पूछो, ये फिर भी दे दें बहाने
वो माँगते है सबसे पर मिला न उनको किसी से
एक प्यारी सी मुस्कान लेकर,चले किसी और ठिकाने
इनको बिन मांगे ही सब , हर बार मिला है सबसे
फिर भी नाको पर गुस्सा और मन में है खिजलाने
उनका दिल तो बच्चा है जी कब टूटे कब जुड़ जाए
संतोषजनक से चेहरे उनके हर वक़्त लगे है बतलाने
इनका दिल जो टूटे तो हर कोई मनाने पहुच जाए
फिर भी लाखों है नखरे इनके चले है दिल को समझाने
और भी है बाते उनकी ,क्या क्या मैं कलम से दर्शाऊ
संघर्ष भरा है जीना उनका,खुद दर्द भी लगता घबराने
इनकी क्या मैं बात करूँ और कहाँ से दर्पण दिखलाऊँ
झूठे दर्द का ढोंग है इनका, बस लगे है सबको भरमाने
उनका इनका के अंतर में बचा नहीं कुछ सिखलाने
गम,जुदाई,बेवफाई का दर्द लिए लगते हो चिल्लाने
तन पे न हो कपडे,सर पे न हो छत,खाने को न दाने
सिर्फ सोंच कर ही देखो,भूल जाओगे दर्द के बहाने
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