Migrant worker
दबी आवाज में वह कह रहे थे ,
परिवार तुम्हारा,हमारा भी है,
इंतजार घर में हमारा भी है ।
बजा के ताली और थाली ,
खूब साथ दिया तुमने हमारा।
हम घर को चले जा रहे थे ,
तुम हमारी आहा में लिखे जा रहे थे।
आज भी तुम आस में हो कि,
मिल जाए पसंद लायक खाना तुम्हें तुम्हारा,
आस में हम भी हैं के,
मिल जाए कोई पानी रोटी देने वाला।
कसूर ना तुम्हारा है, ना हमारा है।
बरसों पहले भूख ने घर से दूर किया,
बरसों बाद भूख घर को ले जा रहा है।
ईद तुम्हारी,हमारी भी है
ईदी का इंतजार तुम्हें,हमें भी है।
-