क़ाश ऐसा प्यार कोई करता हमसे,
जैसा प्यार हमने किआ उनसे।
इन्तज़ार करता मेरा अपने ख़्वाबों में,
ढूंढता मुझे ही अपने सवालोँ में।
पंखुड़ी बनकर लहराती मैं उसकी क़िताबों में,
वो मेरा एह्सास करता अपने जज़्बातों में।
इत्र सी ख़ुशबू उसके तन-बदन पर,
छोड़ देती मैं अक़्सर रातों में।
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