माँ ने अपनी काया से जनकर,
नित् ममता से उसको सींचा होगा,
एक पिता ने गोद में लेकर,
बड़े नाज़ों से उसको पाला होगा,
ज्यों हरे-भरे उपवन का कोई
नव- पुलकित मृदु-प्रसून होगा,
पर हैवानों ने उस कुसुम को तोड़कर,
कुछ इस कदर रौंद डाला,
करता रहा जतन,जूझता रहा
बचाने को अपनी कोपल- सी पंखुड़ियां,
फिर भी हैवानों की हैवानियत से
वह कहाँ बच था पाया।।
क्या बीत रही होगी उस माली(पिता) पर ?
जिसने अपने खून-पसीने से उसको सींचा था,
कैसे जियेगा ?अब माली(माँ) वह...
जिसके लिए वह प्रसून ही पूरा फुलवारी था!!
(जघन्य अपराध उन* का था,
फिर क्यों दण्ड उस मासूम को मिला?
हैवानियत उनमें* थी,
तो फिर क्यों वह प्रसून कलंकित हुआ?)
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