टेढ़े मेढ़े हैं रास्ते, रास्तों पर संभलता रहूँ
ये सफ़र थमे कभी ना, और मैं चलता रहूँ
जहाँ निगाह टिकती है, वो तो रुकता नहीं
दर्द दबाए रक्खा था, दर्द अब दुखता नहीं
झूलते हुए खिड़की के, पालने में पलता रहूँ
ये सफ़र थमे कभी ना, और मैं चलता रहूँ
ख़ाब जो अब टूटता है, तभी साँस आती है
आँखें सुजा कर ही अब, नींद रास आती है
बादलों के पीछे जैसे, सूरज बन ढलता रहूँ
ये सफ़र थमे कभी ना, और मैं चलता रहूँ
पत्तियों से छनती धूप, बंद आँखों पे पड़ती है
आँखें खोलो तो आँखें ही, आँखों में अड़ती हैं
पलकें अपनी मूँद कर, राहतों में जलता रहूँ
ये सफ़र थमे कभी ना, और मैं चलता रहूँ
- अंशुल नागोरी
-