के वो खुशियां तेरे नाम की भी मैं उठा लाया हूं भोली - भाली सी मुमताज़ को मैं रूठा आया हूं जिसके दिल में है घर मेरा उसे मैं रुला आया हूं मर्द हूं ना ताकत अपनी बीवी को मैं दिखा आया हूं उसे क्या पता फरेब किसे कहते हैं मैं आज़ सिखा आया हूं शीशे सा मासूम उसका दिल भी मैं दुखा आया हूं हां बड़ा मर्द हूं मैं औरत को अपनी औकात दिखा आया हूं वो जो अपनी हयात समझती है मुझे मैं उसे बिसात दिखा आया हूं