जब भी खाली वक़्त मिले..
नजाने कितने किस्से कोरे कागज में भर जाऊंगा
लगता है,खाली वक़्त मिले तो कितना कुछ कर जाऊंगा
हर एक अधूरे काम के लिए कुछ पल निकाल लूंगा मैं..
रूठे जितने रिश्ते-फरिश्ते, सबको संभाल लूंगा मैं।
पर जैसे ही दिन ऐसा आता, कुछ यूं पिघलने लगता है
रेत की मानिंद लम्हा लम्हा हांथो से फिसलने लगता है
बताओ ये कैसा खालीपन, जो पूरे दिन से जीत जाता है
कुछ करने की फिराक में कुछ बिन किये बीत जाता है
परिंदे फिर हैं तलाश में, के कोई हमसाया दरख़्त मिले
इस बार इतिहास लिख देना, जब भी खाली वक़्त मिले
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