संभल हाथ लगाना तुम मुझको ,मैं नारी हूं पतवार नहीं ....
हर बार इशारों से ही डोलू,मैं वो तेरी जूती वाली नार नहीं...
तुम मुझे गिराओ ,मैं तुम्हें संभालूं ,
तुम हवस बढ़ाओ मैं संस्कार बचालूँ....
तुम चरित्र सरेआम सजाओ मेरा और मैं तुम्हें सरताज बनालूं ,,
अब हमसे ये ढोंगी वाला प्यार नहीं...
सजाते तुम मुझे ,अपनी बेगैरत सी महफिलो में,
तुम्हारे रंगीन शाम का, मैं वो श्रृंगार नहीं....
शिकार तुम्हारे जुल्मो का,मैं हर बार तुम्हारे जुमलों का,
नही !अब जज्बा है तो तलवार से लड़ो ,जज्बातों से कोई खिलवाड़ नहीं....
जब जी चाहे नर नारी को सर पर बिठाये,जब जी चाहे चरण पूजाये,
न तुम जो राघव राम हो ,मैं भी अब सीता सती जैसी, या कोई अबला नार नहीं ....
क्रोध में संधार ज्वाला से जला दे, प्रेम में नारी का कोई पार नहीं...
पर जीवन भर इशारों पर ही डोले औरत ,अब वो वो जूती वाली नार नहीं....
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