तुम्हारे घर की दीवार का जो रंग है,
वो कैसा है? रंग बदलता है?
सुबह की धूप पड़ने पर सुनहरी हो जाती है?
या शाम की ढलती धूप में गुलाबी सी चमक जाती है?
मुझे देखना है।
इन दीवारों पर कैसी तस्वीरें टंगी हुई है,
जो तुम्हे दिखती है, पर किसी और को नहीं?
अंजान चेहरे हैं, या जाने पहचाने से?
मुझे देखना है।
बाकी और क्या छुपी है इन दीवारों के बीच?
तुमने कितनी दफ़े इन दीवारों के सहारे खुद को संभाला है?
मुझे जानना है।
कभी किसी से मोहब्बत की, इन दीवारों से चिपक कर?
है हाथों के निशान तुम्हारे, उनके, उन दीवारों पर?
मुझे छूना है।
तुम्हे कहीं ये तो नहीं लगता, के तुम्हारे सारे राज़,
इन दीवारों के पीछे दफ़न है?
क्या तुम्हारे सारे पल, खुशी, दर्द, खामोशी, तुम्हारा वजूद,
इन चार दिवारी के सहारे महफूज़ है?
मुझे समझना है।
क्या तुम्हारी आहट, तुम्हारी धड़कन,
इन चार दिवारी के बीच, धीमी है?
मुझे सुनना है।
जो कभी कैद ना होने वाली मैं,
एक बार इन दीवारों के बीच मुझे कैद होना है।
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