आसान हैं ये राहें बस मंजिले ज़रा दूर हैं....
कुछ लौट आए और कुछ, चलने पर मजबूर हैं....
अरसे गुज़र जाते हैं किसी को अपना बनाने.....
किसी को तलाश किसी की, कोई ख़ुद में मस्त पूर हैं....
सब कर्म हैं साहेब माटी भी ज़िला देता...
कुछ जी रहे हैं मौत और, कुछ मरने पर मशहूर हैं....
चंद पैसों के खातिर हैं दौड़ ये हैं जारी.....
किसी के ख़ज़ाने भरे पड़े, कोई बना मजदूर हैं...
प्यास हैं सबको किसी के अपनेपन की....
कोई ढो रहा हैं पत्थर, किसी का दिल ही कोहिनूर हैं....
जिंदगी के समंदर की लहरों में हैं मोती....
कुछ बांट रहे मोहब्बत, कुछ को सिर्फ़ गुरूर हैं....
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