हुकूमत की अंधी लाठी को देख,
पिटते बच्चों की कद-काठी तो देख।
बहाने हुकुम के बासी तो देख,
सवालों पे आती खाँसी को देख।
तूफान से पहले की शांति को देख,
धूल से सनी ये क्रांति तो देख।
सड़क पर उतरी आँधी भी देख,
जलती मशाल गाँधी की देख।
गूँजते इंक़लाबी नारे को देख,
देशभक्ति के तराने भी देख।
भगत सिंह की लिखी इबारत तो देख,
सुभाष के विचारों की अमानत को देख।
इंसाफ़-बराबरी के वादे तो देख,
अनेकता में एकता इरादे को देख।
आज़ाद देश की विरासत तो देख,
उम्मीदों से भरे भारत को देख।
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