एक लेखक की संपति होती हैं,
वो कविताएं जो भूलवश या
सुविज्ञ पाठक के अभाव में
नहीं लिखी- पढ़ी गई।
किसी संयोग या परिस्थितिवश,
सम्मान और प्रतिष्ठा पाने वाली कविताएं,
होती हैं किसी शोरूम के बाहर प्रदर्शित
परिधानों के जैसी, जो आकर्षित तो करती है,
परन्तु, मूल्य और पसंद होती हैं,
सिर्फ दुकान में रखी उपेक्षित कविताएं।
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