अक्सर याद आती है मुझे उनकी बातें
पर सच कहूँ उन्हें कभी याद नहीं करती मैं
उनका चेहरा निगाहों में बस तो गया है
पर बंद आँखों से कभी दीदार नहीं करती मैं
लबों पे एक उनका हीं नाम ठहर गया है
पर उनके लिए कोई फरियाद नहीं करती मैं
आदत ना हो जाए मुझे उनके साथ की
इसी डर से अब उन से बात नहीं करती मैं
दिलासा देना सीख लिया है अब खुद को
कोई वजह नहीं बची मुलाकात नहीं करती मैं
अधुरी दास्ताँ लिख गया वो किस्मत के पन्नो पे
बंदिशे हैं कुछ ऐसी अब अरमान नहीं बुनती मैं
जाने कब बे-अदब हो जाये इश्क़ पता नहीं
बस इसलिए दिल्लगी की आस नहीं करती मैं
तसवीर से उनके कुछ शिकवे कर लेती हूँ
अब किसी के सोच की परवाह नहीं करती मैं
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