ग़मों का दौर जब आए सफ़र पर तुम चले जाना तुम्हारा दिल जो घबराए सफ़र पर तुम चले जाना तुम्हारी राह जब धुँधली हो मंज़िल न नज़र आए अँधेरा जब भी गहराए सफ़र पर तुम चले जाना
उनकी आंखों की झील में हम डूबते चले गए, कष्टि से किनारों तक का सफर साथ चलते गए, वह कहते रहे हमसे पहुंचतेही मंजिलें अलग हो जाएंगी, पर हम नादान, इजहार करना भूल गई