हर तरफ़ एक अजीब सा शोर हैं ।
कही चिल्लाने की आवाज़, तो कही फ़रीयादो पर ज़ोर हैं ।।
कोई रोकर भीक मांग रहा हैं ।
तो कोई सब होने पर भी, कुछ और चाह रहा हैं ।।
बस चीखते-चिल्लाते गुज़ार रहे हैं वक़्त ।
बुराईया कही से भी निकाल रहे सब ।।
अच्छा हो या बुरा सोच हमेशा वही हैं रहती, कि हमारी ज़िन्दगी, की तो सब ने लेली ।
खामोशी से गिनी होती, तो बुराईया कम और अच्छाईयाँ ज़्यादा मिलती ।।
मगर उस शोर से दोस्ती करने वाले ।
कहा समझ पाएंगे खामोशी के मोहब्बत के जाले ।।
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