काले मोती की ये डोर
जो गले में मेरे बाँधी है तूने
बंधन नहीं है ये
मात्र फंदा है गले का मेरे
जो रंगी है तूने माँग मेरी
खुद को तू रंगोली ना समझ
गर देखेगा रूह को मेरी
मुझे उसकी मोहब्बत के रंग में डूबा पाएगा
जो यूँ तू दर्द देता है
कुचल कर हाथों की चूड़ियाँ
तो सुन ले तूभी
हाड-माँस का पुतला हूँ
तेरे दर्द का मझ पर कोई असर नहीं
जो तू रगड़ कर अपने पैरों को मेरे पैरों से
पायल से जख्मी करता है
पैरों से बहता लहू भी
उसके नाम की मेंहदी रचता है
चूम ले चाहे बेदर्दी से लबों को
मेरी रूह को ना चूम पाएगा
तू बिस्तर पर चाहे कुचल डाल
इस जिस्म को
मुझे हर बार उसकी रूह में घुला पाएगा
जिस्म को चाहे अपना बनाया हो तूने मेरे
मेरी रूह को कभी खुद का ना कह पाएगा
व्यर्थ है सब
तू कभी मुझे अपना ना बना पाएगा।
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