मुझे नहीं आता बेतहाशा खराबियों में जीना
बड़ा अफसोस होता है बर्बादियो में जीना
मै तन्हा रहूं तो भी कोई गम नहीं मुझे
नही चाहती मै महफ़िल ए मक्कारियों में जीना
ना नमाज़ की पाबंदी मेरी ,ना जुबां पर जिक्र ए खुदा
कैसे कह दूं खुदा ,मुझे खुशहालियों में जीना
नफ्स पर काबू नहीं जुबां भी नापाक है
मुझे ना हिंद ना, ना पाक, ना अफगानियों में जीना
खुदा या कर दे कर्म, ना हो मुझ पर सितम
ख्याल आता है मुझे फि नार ए जहन्नामा का जीना
लेकिन इस खयाल ए खौफ से भी दिल पाक नही होता
नहीं जानती मै मजहबी बीमारियों में जीना
बिमारी सिर्फ वो नहीं जो रास्ते से भटका दे
बिमारी कम इल्मी की और बेख्याली में जीना
मुख्तसर सी जिंदगी पर, मेरा बद अमल है भरी
क्या हुआ हासिल मुझे ,इन आबादियों में जीना
कर मेरी तौबा कबूल , ऐ मेरे रहमान ओ रहीम
बिन सिरात उल मुस्तकीम के ,नही लाचारियों में जीना
Nargis Khatoon
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