समय बदल सी गई हैं
बचपन खो सा गया हैं
कुछ अजनबी सी दासता थी,
हम हँसाते थे,वो रुलाती थी,
बेशक वो बेहद शरारती थी,
पर मेरे दिल के बहुत करीब थी।
कागज की कश्ती बनाके,
खुशिया अलग ही झलकती थी,
दोनो के मन मे मस्ती थी,
खेल खेल के वो बहुत हस्ती थी।
चाहते थे हम उस बचपन की खुशियों को याद करके खो जाए,
ना जाने कहा दुब गए है इस जवानी में ,
चाहकर भी हम उस समय में ना लौट पाए।
याद आते है वो बचपन के दिन,
जहा माँ की एक डाँट से आंखों से आँसू निकल आते थे,
पर उसकी एक मुस्कान से ,जानो हज़ारो आँसू भी उसपे कुर्बान कर जाते थे।
बदमाशियों का टोकरी ले वो,
दिन भर सताती रहती थी,
आज वो बदमाशियां तो है,
पर सताने वाली की कमी हो गई।
आज वो समय बदल से गया है,
जिंदगी थम सी गई हैं,
याद करते हैं वो बचपन के दिन,
जहाँ हम एक दूसरे का साथ न छोड़ने का वादा किए थे,
आज वो वादा ,एक दूरी बन गई,
और हम एक नदी का किनारा बन गए।
लौट जाना है वो बचपन में,
साथ खेलना है एक दूसरे के साथ,
दोहरानी है वो मस्तियाँ,
और सो जाना हैं माँ के पास।
-