कभी-कभी
वक्त चलता रहता है
और भावशुन्य होकर
मैं रुक जाती हूं,
और कभी-कभी
अंतर्द्वंद से उलझते हुये,
मैं चलती हूँ
और वक्त थम जाता है,
कुछ इस तरह
समझौता कर लेते हैं,
हम दोनों
एक दूसरे की
परिस्थितियों से,
ना मैंने कभी वक्त को रोका
और न वक्त ने मुझे,
हम दोनों सदैव
साथ चलते रहे,
दो समानांतर और अंत
तक साथ देने वाली
रेखाओं की तरह।
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